Wednesday, April 26, 2023

मैं तो जनम जनम का जोगी
मेरा पंथ निहारो मत
जगती के इस बियाबान में
मुझको सखे पुकारो मत

टूट चुका हूं कितनी बारी
डूब चुका हूं होकर भारी
भागदौड़ के खेल खेलकर
ऊब चुका दुनियां से सारी
तुम इन नेह भरी बातों से
मुझको सखे दुलारो मत ।।

धड से जुड कर मूल हुआ हूं
ठूंठ में खिल कर फूल हुआ हूं
अपनी ही छाया को छूकर
खुद में ही मशगूल हुआ हूं
मेरी भूल,भूल रहने दो
उसको सखे सुधारो मत

सबके चेहरे जान चुका हूं
सबके कहने मान चुका हूं
सच्ची–झूठी,असली नकली
हर सूरत पहचान चुका हूं
मैं तो काला सही सखे
तुम मुझको उजियारो मानो मत।

सागर गहरे, दरिया बहरे 
उन पर हैं लहरों के पहरे
कैसे जूझें जलधारों से
सखे हमारे बदन इकहरे 
मैं तो मांझी नहीं सखे 
गहरे में मुझे उतारो मत ।।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

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