खिलखिलाती धूप फैली
शाम ढलते ही ये अलसाये नयन
हम क्या करें
दिवस के हलचल भरे
नित ख्वाब आंखों में लिये
न थके,न कभी हारे
बस अनवरत चलते रहे
अनगिनत सपने हमारे
पूर्ण करने की अथक,चाहत लिये
बन पथिक चलते रहे
साँझ ढलते ही थकन से
अंग ये बोझिल हुए
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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