प्रतीक्षा से निरंतर थकित मन को
एक समय बीत जाने के बाद
कितना भी पुकारों शब्द अर्थहीन हो जाते है
कष्ट में सहारे के लिए
दिये गए हाथों को सहारा न दिया
तब एक समय बीत जाने के बाद
कितना भी थामों अवलंबन अर्थहीन हो जाते है
फिर गालों तक बह गये अश्रु के लिए
डबडबायी आँखों को देख न पाये
तब एक समय बीत जाने के बाद
कितना भी अश्रु बहालो संवेदनाएं अर्थहीन हो जाते है
प्रेम में पुकारें स्वरों को अनसुना कर
प्रति उत्तर न कर पाये
तब एक समय बीत जाने के बाद
कितना भी मनुहार करों भावनाएं अर्थहीन हो जाती हैं।
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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