तुम बारिश कि बूंदो सी,
मै तपती दुपहरी सा लगता हूँ,
तुम नदियां छोटी सी,
मै सागर समाने बाला लगता हूँ,
तुम मंदिर की मुरत सी,
मैं चोखट मे बैठा दिखाता हूँ,
तुम रानी महलो सी,
मैं राजा रंक सा लगता हूँ,
तुम फूलो कि महक सी,
मैं मुरझाया सा लगता हूँ,
तुम सूरज की किरण हो पहली सी,
मैं रात की कालिमा सा लगता हूँ,
तुम रंग-बिरंगी तितली सी,
मैं भोरा आवारा सा लगता हूँ,
बस भूल ना जाना मुझे,
मैं तुझ मे समाया सा कहीं तुझ सा दिखता हूँ...
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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