इस ज़मीं से उस फ़लक़ तक
है कोई तारा नहीं
मेरे हमदम सा ज़माने में
कोई प्यारा नहीँ।।
एक मूरत को बसाकर
कर दिया मन्दिर इसे
दिल हमारा घर है तेरा
अब ये बेचारा नहीं।।
ज़िन्दगी में हूँ मैं शामिल
दिल मे थोड़ी दे जगह
थोड़ी सी चाहत मुझे बस
चाहिए सारा नही।।
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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