Thursday, September 28, 2023

तुम दिल की गहराई में हो जैसे कोई खुशबू शामिल
फागुन की पुरवाई में हो तुम दिल की गहराई में हो

याद तुम्हारी आये जैसे सावन का लहरा आ जाए
तेरे अधरों की सुषमा तो जैसे घन में बिजली मुसकाये

तेरी अरुणिम पलकें जैसे प्रेम पत्र पुरइन पातों का
तुमसे ही कोमलता लेकर जनम हुआ इन जलजातों का

काली रातों के तारों से लगते हैं ये नयन तुम्हारे
तेरी अलकों में ही पलती हैं शायद ये मधुर बहारें

जिन आँखों का स्वप्न बने तूं उन आँखों का स्वप्न हो पूरा
तुमसे मिलकर लगता जैसे खत्म हुआ हर सफर अधूरा

अनुबंधों के आईने में हमने देखा रूप तुम्हारा
सामवेद की ऋचा लगे तू या निर्मल गंगा की धारा

तुम निसर्ग के हाथ पली हो किस लय से हैं गात तुम्हारे
सुनने आता चाँद गगन से तेरे नूपुर की झनकारें

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

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