Sunday, November 5, 2023

साँस के धागे से यूँ उलझे रहे
ख़ुश्क से ज्यूँ शाख पे पत्ते रहे।।

जब दिये की रोशनी कुछ भी न थी
ख़्वाब फिर भी आँख में पलते रहे।।

रोकना कदमों को चाहा था बहुत
आपकी राहों में पर चलते रहे।।

कुछ तो था जो दरमियाँ था हमनवा
रफ्ता रफ्ता हम जिसे खोते रहे।।

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

No comments:

Post a Comment