पहली बार इसी छुक-छुक ट्रेन की सवारी की थी..
वो भी सीधे चालक के रूप में..
मुँह से ही 'पी-पी' का हाॅर्न बजाते
इससे न जाने कितनी बार घर, दालान, दुआर सब घूमा..
कई बार लड़ी-भिंड़ी भी..
पर संभल कर दौड़ती रही हमेशा...
ये जब से छूटी.. जिंदगी बेपटरी ही रही हमेशा..
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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