भाषाओं की दुर्बलता थी कि
शब्दों के अर्थ सीमित रह गए
इसलिए मैंने हमारे मध्य
मौन को संवाद का माध्यम चुना
जहाँ भाषा नहीं,भावनाओं का संवाद होना था
पर भूल गया मैं कि भावनाओं के
संप्रेषण के लिए सिर्फ़ मौन नहीं
संवेदना से भरा एक हृदय भी अनिवार्य है
जो मौन को उसी के अर्थ में महसूस करे
हमारे संवाद की विफलता प्रमाण है कि
तुम्हारा प्रस्तर हृदय इस संवाद के सर्वथा अयोग्य है
तुम्हें भाषा नहीं, भावनाओं को पढ़ना होगा
तुम्हें शब्द नहीं, अनुभूतियों को गढ़ना होगा।
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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