Tuesday, January 30, 2024

जब अपनी पलकें भीग गईं
मन उदधि की बूंदें रीत गईं।

क्या सोचा था क्या भोगा है
जग नश्वर है एक धोखा‌ है।

कल ही तो मन के फूल खिले
ना शिकवे थे ना कोई गिले।

मन मंदिर सा सजने को था
जो फूल खिला फलने को था।

अगले पल दिल मिलने को थे
बगिया में गुल खिलने को थे।

दिल दावानल ने तप्त किया
और दहल उठा बेचैन जिया

सुख ने जो घर संसार रचा
उसमें दुख ही बस यार बचा

अंधियारे ने डस लिया प्रकाश
हर पल रहता मौसम उदास

अब जीवन में है ग़म ही ग़म
जो तेल खतम सो खेल खतम

सुख की घड़ियां अब बीत गईं
हम हार गए नियति जीत गई
हम हार गए.....

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

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