चन्द्र-वदन मृगलोचनी, सुंदर रूप- स्वरूप!
चितवत चलत चकोर जस, मुख पर फैली धूप!!
प्रियतम के रस में पगी,सौम्य सुलभ मुस्कान!
तकती घूंघट ओट प्रिय, चला नयन के बाण!!
बरूनी की है धार अस, जैसे तीक्ष्ण कृपाण!
भौहन में गोरी हँसत, चला प्रेम का बाण!!
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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