माह भर तुझसे परे रहकर हुआ निष्प्राण कविते
भेंट ले भर अंक मुझको,भर पुनःनव प्राण कविते
भावनाओं की सदा तूँ संगिनी निःस्वार्थ कविते
तूँ हृदय में पल रहे हर भाव में निहितार्थ कविते
पूर्णतः असहाय था मैं, पूर्णतः निरुपाय भी था
ज्यों रहे होंगे कभी गाण्डीव के बिन पार्थ कविते
सत्य है! तुझ बिन हमारा शून्य है परिमाण कविते!
भेंट ले भर अंक मुझको भर पुनः नव प्राण कविते!
तूँ अबोली है भले ही बोलते हर शब्द कविते!
इस जगत को निज तुला में तोलते हर शब्द कविते!
अनकही मन की कथाएँ रह गयीं थीं जो हमारी
पट उन्ही अभिव्यक्तियों के खोलते हर शब्द कविते!
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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