मैं चला था द्वंद लेकर मौन अपने संग लेकर
पहली पंक्ति में खड़ा था अनगिनत संबंध लेकर
स्वयं में सम्पूर्ण होकर संघर्ष से परिपूर्ण होकर
राग लेकर द्वेष लेकर कुछ नया परिवेश लेकर
बोलते पेड़ों को लेकर टूटती लहरों को लेकर
मैंने समझा मैं ही अविरल मैं धरा पर श्रेष्ठ हूं
दान और अभिमान मैं ही सृष्टि का वरदान मैं ही.
पाप के फूटे घड़े में सामर्थ्य भरता पुण्य हूँ
शिखर पर बैठा अकेला सतह पर मैं शून्य हूँ,
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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