Thursday, August 1, 2024

मैं चला था द्वंद लेकर मौन अपने संग लेकर
पहली पंक्ति में खड़ा था अनगिनत संबंध लेकर

स्वयं में सम्पूर्ण होकर संघर्ष से परिपूर्ण होकर
राग लेकर द्वेष लेकर कुछ नया परिवेश लेकर

बोलते पेड़ों को लेकर टूटती लहरों को लेकर
मैंने समझा मैं ही अविरल मैं धरा पर श्रेष्ठ हूं

दान और अभिमान मैं ही सृष्टि का वरदान मैं ही.
पाप के फूटे घड़े में सामर्थ्य भरता पुण्य हूँ
शिखर पर बैठा अकेला सतह पर मैं शून्य हूँ, 

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

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