धरा धुरी पै घूमकर प्रथा अटल निभा गयी
भानु पथ बदल चला उषा नवल सी आ गयी
शिशिर का प्रशीत कंप हो रहा विरल यथा
आग में अलाव की ताप भी हुआ वृथा
रश्मियां प्रखर हुयीं धूप खिलखिला उठी
हरी-भरी हुयी मही फसल लहलहा उठी
कनक बालियाँ निकल खेत खेत गा रहीं
काश्तकार को सुखद स्वप्न सा दिखा रहीं
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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