Monday, September 2, 2024

धरा धुरी पै घूमकर प्रथा अटल निभा गयी
भानु पथ बदल चला उषा नवल सी आ गयी

शिशिर का प्रशीत कंप हो रहा विरल यथा
आग में अलाव की ताप भी हुआ वृथा

रश्मियां प्रखर हुयीं धूप खिलखिला उठी
हरी-भरी हुयी मही फसल लहलहा उठी

कनक बालियाँ निकल खेत खेत गा रहीं
काश्तकार को सुखद स्वप्न सा दिखा रहीं

~~~~ सुनिल #शांडिल्य

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