मदहोश करती अदायें, मयकदे से गुजरे ऐसे
जाम तेरे नयनों के, मयकदा तेरी मदहोशी
इश्क के समुंदर में, वो डुबकियां थीं ऐसी
वापस जो आना चाहें, लहरें खींचतीं मोहब्बतकी
भूलकर न भुला पायें, मोहब्बत है तेरी ऐसी
चढ़ी इश्क की मदिरा है, महक तेरे है यौवन की
बेचैनियाँ रात-दिन की, है मोहब्बत तुमसे ऐसी
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
No comments:
Post a Comment