इक चेहरा मुस्काता सा ।
खिली-खिली सी आभा मुख पर,
बहारोँ का रूप चुराता सा ।
चंचल चंचल नैन कँटीले,
गहरे-गहरे नीले-नीले,
समन्दर सा लहराता सा ।
होटोँ पे खिला गुलाब ज्योँ,
छोड़ गया हो अपना आँचल,
गुलाबी रंग बिखराता सा ।
जुल्फेँ हैं ज्योँ श्याम घटायेँ,
उड़-उड़ कर ढँक लेते मुख को,
बदली मेँ चाँद छुपाता सा ।
कोयल के से बोल सुरीले,
बाँध लेती है ऐसे मन को,
झरनोँ के गीत सुनाता सा ।
मन सुन्दर यूँ जैसे पानी,
बादल के चेहरे पर जैसे,
चाँद के भाव जगाता सा ।
~~~~ सुनिल #शांडिल्य
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