Thursday, March 23, 2017
तुम इतने समाए हो मुझमें
कि ना जाने
,
कहाँ तक मैं
और कहाँ तक तुम...!
मेरी हर सोच पर
,
पहरा
तुम्हारी आत्मीय बाँहों का..
तुम जो
,
लग जाते हो गले...
तो मन हो जाता है मगन..
और लग जाती है अगन
तुम छाए हो
,
मुझ पर
इस कदर कि मैं....
ढूंढता हूँ खुद को तुम मैं...
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