मैं झरना ,तुम पानी मेरा
मैं बहता हूँ तुमसे, तुम तक।
मैं आँख तुम रौशनी मेरी
मैं देखता हूँ तुमसे, तुम तक।
उत्तर में नहीं, न ही दक्षिण में,
तुम हो मेरे कदमों की नाप
और बाहों के विस्तार तक।
मैं एक यात्री, तुम पथ मेरा
मैं जाता हूँ तुमसे, तुम तक!
----- सुनिल श्रीगौड़
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