Monday, April 12, 2021

 मैं झरना ,तुम पानी मेरा  

मैं बहता हूँ  तुमसे, तुम तक। 


मैं आँख तुम रौशनी मेरी

मैं देखता हूँ  तुमसे, तुम तक। 


उत्तर में नहीं, न ही दक्षिण में,

तुम हो मेरे कदमों की नाप 

और बाहों के विस्तार तक।


मैं एक यात्री, तुम पथ मेरा 

मैं जाता हूँ  तुमसे, तुम तक!


----- सुनिल श्रीगौड़

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