तेरे अल्फाज़ो में खुद को पाया है
यूँही तो नहीं दिल तुमसे लगाया है
मैं भटकता रहा अंधेरी गलियों में बनके राही
मंज़िल मेरी तो तेरी ज़ुल्फ़ों का साया है
तेरे मिलने से ही जाना हमने वो गीत कितना सुरीला है
जो मिलकर हमने गाया है
---- सुनिल शांडिल्य
No comments:
Post a Comment