मेरी हर ग़ज़ल हर नज़्म
तेरे ही नाम होती है
वो दिन बड़ा अच्छा गुजरता है
जिस दिन तुमसे बात होती है
जिस्म जिस्म से गर ना भी मिल पायें
रूह से रूह की मुलाक़ात होती है
लोग सूरज को ढूंढते फिरते हैं
अपनी तो हसीं रात होती है
----- सुनिल शांडिल्य
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