Wednesday, April 28, 2021

 रूह का बन्धन है यह तेरा मेरा

किसी डोरी का नहीं मोहताज है


सातों सुर बजते हैं दो दिलों में 

पर किसी तीसरे को आती नहीं आवाज़ है


मेरी बांसुरी की धुन पर उड़ती सी हो तुम

जबकि बक्शे तुझे खुदा ने नहीं परवाज़ हैं


---- सुनिल शांडिल्य

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