निस्वार्थ समर्पण को मेरी कमजोरी मत समझ
मन के रिश्ते को कच्ची डोरी तू मत समझ
तुम पढ़ ही ना सकी ये कमी तुम्हारी है
मेरे मन की किताब को कोरी मत समझ
---- सुनिल श्रीगौड
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