Monday, May 10, 2021

 ख्वाहिशों की इक नदी

बहती रही मनके अंदर मे


डूबते-उतरते रहे हम 

सपनों के बवंडर मे


लगाता रहा मन गोते

भावनाओं के समंदर मे


ढुंढते रहे अंजानी मंजिल

भटकते किसी कलंदर से


जिन्दगी गुजरती रही ठिकाना न मिला

रहे मंझधार मे हरदम किनारा न मिला


---- सुनिल शांडिल्य

No comments:

Post a Comment