कुच्छ हादसों ने तोड़ा है मुझे
नहीं तुझसे जुदा हूँ मैं
नाराज़गी है तक़दीर से अपनी
नहीं तुझसे खफ़ा हूँ मैं
पराया सा लगने लगा हर शख्स मुझे
पर तुमसे जुड़ा हूँ मैं
इतनी भीड़ में खुद को अकेला पाया
शुक्र है तेरे साथ खड़ा हूँ मैं
----- सुनिल शांडिल्य
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