हमने ऐक गुनाह कर डाला
ज़िंदगी को तबाह कर डाला
जो ज़ख्म भर चुके थे मेरे कब के
नोंच नोंच के उनको हरा कर डाला
बेच कर अपनी खुशीआं बाज़ार में
घर अपना खुद गमों से भर डाला
लुत्फ देने लगी तन्हाईयाँ ऐसे के
महफ़िल से खुद को जुदा कर डाला
---- सुनिल शांडिल्य
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