Friday, May 28, 2021

 हमने ऐक गुनाह कर डाला

ज़िंदगी को तबाह कर डाला


जो ज़ख्म भर चुके थे मेरे कब के

नोंच नोंच के उनको हरा कर डाला


बेच कर अपनी खुशीआं बाज़ार में

घर अपना खुद गमों से भर डाला


लुत्फ देने लगी तन्हाईयाँ ऐसे के

महफ़िल से खुद को जुदा कर डाला


---- सुनिल शांडिल्य

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