नशीली है नज़र तेरी
और शराबी है नजरिया
है सूरत तेरी चांद सी
उफ्फ ये बदन गुलाबी
लगे अजंता की तू मूरत
तसव्वुर तू हर शायर की
है,नूर गजल सा तुझमें
चेहरा तेरा गजब किताबी
तितली सी दो पलकें तेरी
थिरकती हैं व मचलती हैं
लरज़ते सुर्ख़ दो लब हैं
नज़ारा क्या शबाबी है ।।
---- सुनिल शांडिल्य
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