यूं तन्हा खुद को महसूस करता हूं,
की लफ्जों को भी तरस आता मुझपे।
जाने क्या क्या सोचता रहता है,
ये मन मेरा,विचरता रहता यादों में।
उन यादों में जिसमें सिर्फ मैं हूं,
तुमने तो छोड़ दिया कबका तन्हा मुझे।
लिखता रहता हूं श्रृंगार से भरी कविताएं,
पर मन की पीर कभी कभी छलक ही जाती है।।
---- सुनिल शांडिल्य
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