Sunday, June 27, 2021

 बला की खूबसूरत थी

अधर के

दाहिन

से

थोड़ा नीचे

एक तिल को

घर

मिला था ।


जिसे देख चाँद

रातभर

जलता

और,

मैं चाँद से ।


सिहर उठती

आगोश

में

सिमट जाती,

अधर को जब भी छूता,

बालों को सहलाते

कानो 

में

मैं कहता "प्रेयसी"

चांद उस क्षण

बादलों

में छुप जाता,

जल भुन जाता हो जैसे ।


---- सुनिल शांडिल्य

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