वो जो नक़्श थे तेरी_याद के
मुझे ख़्वाब कैसे दिखा गये
कभी हम राह में रुक गये
कभी तुम लौट के आ गये
वो जो गीत तुम पर लिखा था
हम उसी को गुनगुना गये
नसीब अपना मेहरबां यूँ रहा
तेरी दोस्ती हम पा गये
----- सुनिल शांडिल्य
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