ये जो तुम्हारी पांव की पाजेब है
छनकती कम बहकाती ज्यादा है
जब भी इसकी सुर लहरी
कानों में गूंजती है
सोचता हूं थाम लूं ताउम्र के लिए,
तुमसे बिछड़ने का डर चुभता बहुत है
अब आ जाओ पहलू में गर भरोसा है तो..
दाग नहीं लगाऊंगा ताउम्र साथ का वादा है ।
---- सुनिल शांडिल्य
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