ना मैं "जोगी"
ना मैं "बंजारा"
ना मैं "बादल"
कोई "आवारा" हूं ¦¦
"भटकता" हूं
तेरी ही "धुन" मे
मैं "दीवाना"
मेरी जान तुम्हारा हूं ¦¦
रहे तू "दूर"
कितनी भी,
तुझे मुझ से ही "मिलना" है ¦¦
"लहर" तू "प्रेम"
के "दरिया" की,
मैं तेरा ही तो "किनारा" हूं ¦¦
---- सुनिल शांडिल्य
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