सुनो...
मुझे तेरे चेहरे पर ये उदासी खलती है
खिलखिलाती, इठलाती अच्छी लगती है
लफ्ज़-दर-लफ्ज़ मिलो या रूबरू तुम
अहसास-ए-रूह मिलकर अच्छी लगती है
रिश्ते हजारों जमाने मे मतलबी है
रूहे-अहसासों में मुस्कराती अच्छी लगती है
न रखा करो यू उदासी चेहरे पर तुम
इक तू ही मेरी रूह से रूहानी लगती है
---- सुनिल शांडिल्य
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