Wednesday, August 4, 2021

 सुनो...

मुझे तेरे चेहरे पर ये उदासी खलती है

खिलखिलाती, इठलाती अच्छी लगती है


लफ्ज़-दर-लफ्ज़ मिलो या रूबरू तुम

अहसास-ए-रूह मिलकर अच्छी लगती है


रिश्ते हजारों जमाने मे मतलबी है

रूहे-अहसासों में मुस्कराती अच्छी लगती है


न रखा करो यू उदासी चेहरे पर तुम

इक तू ही मेरी रूह से रूहानी लगती है


---- सुनिल शांडिल्य

No comments:

Post a Comment