नज़्में उलझी है सीने में ,
मिसरे अटके हुए लबों पे ।।
उड़ते फिरते तितलियों के तरह ,
लफ़्ज कागज़ पे बैठते ही नहीं ।।
कब से बैठा हुआ हूँ मैं ,ए हसीं ,
सादे कागज़ पे लिख के तेरा नाम ।।
बस तेरा नाम ही मुकम्मल है ,
इससे बेहतर कोई नज़्म क्या होगी ।।
---- सुनिल #शांडिल्य
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