Thursday, August 19, 2021

 नज़्में उलझी है सीने में ,

मिसरे अटके हुए लबों पे ।।


उड़ते फिरते तितलियों के तरह ,

लफ़्ज कागज़ पे बैठते ही नहीं ।।


कब से बैठा हुआ हूँ मैं ,ए हसीं ,

सादे कागज़ पे लिख के तेरा नाम ।।


बस तेरा नाम ही मुकम्मल है ,

इससे बेहतर कोई नज़्म क्या होगी ।।


---- सुनिल #शांडिल्य

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