Tuesday, August 31, 2021

 इक अधूरा सा जो

गजल मैं लिख रहा हूं ,


तुम्हें  जो  देखूं  मैं  तो 

हो जाए मुकम्मल यूं ही ।।


कभी  संग  छत पे

चलना चांदनी रात में ,


कभी गालों पे मेरे 

रख देना बोसा यूं ही ।।


लो एक ख्याल को

नज्म में बदल दिया ,


तुम आगोश में बिखरो

गजल लिख दूं  यूं  ही ।।


---- सुनिल #शांडिल्य

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