एक नज्म लिखता हूं मैं तेरे नाम की
जाती नही खुमारी तेरे अहसास की
दरिया में जैसे है सैलाब उमड़ता
वैसे ही सैलाब उमड़ती तेरी यादों की
सोलह श्रृंगार में तू जो आई पास मेरे
अंखियों से देख तुझे मैने इश्क बयां की
गूंजते हैं इक इक लफ्ज मेरे कानों में
जो कल रात मेरे आगोश में तूने बयां की
---- सुनिल #शांडिल्य
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