Saturday, September 4, 2021

 तुम वो हो

जो मेरे अंतर्मन

को छू पाई हो


तुमने मुझे

उंगलियों के पोर

से नही


मुझे छुआ है

अपने शब्दों से


अपनी आंखों

के मौन से


अनकहे

एहसासों से


बसने लगी हो

तुम मुझमें

और मैं

तुझमें


चल रहे दोनो

कदम दर कदम

एक दूजे की

ओर


शायद मंजिल

हमारी एक दूजे की

पनाहोँ में है..


---- सुनिल #शांडिल्य

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