तुम वो हो
जो मेरे अंतर्मन
को छू पाई हो
तुमने मुझे
उंगलियों के पोर
से नही
मुझे छुआ है
अपने शब्दों से
अपनी आंखों
के मौन से
अनकहे
एहसासों से
बसने लगी हो
तुम मुझमें
और मैं
तुझमें
चल रहे दोनो
कदम दर कदम
एक दूजे की
ओर
शायद मंजिल
हमारी एक दूजे की
पनाहोँ में है..
---- सुनिल #शांडिल्य
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