एकांत में नदी किनारे
नश्वर देह के साथ बैठा
हवाओं में झूमते पेड़ पौधे
ठंडी ठंडी पुरवाई
पत्तों की मधुर आवाज
शाम पहर
डायरी में यादों के
पन्ने पलट रहा
सहसा
सुखी गुलाब की पंखुड़ी
उन पन्नों से बिखरी
महकी मेरी यादें तत्क्षण
आंखों में एक अक्स उभरा
कुछ बूंदें
आंखों से ढलक गई
---- सुनिल #शांडिल्य
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