Tuesday, October 26, 2021

 एकांत में नदी किनारे

नश्वर देह के साथ बैठा


हवाओं में झूमते पेड़ पौधे

ठंडी ठंडी पुरवाई

पत्तों की मधुर आवाज

शाम पहर


डायरी में यादों के

पन्ने पलट रहा

सहसा

सुखी गुलाब की पंखुड़ी

उन पन्नों से बिखरी


महकी मेरी यादें तत्क्षण

आंखों में एक अक्स उभरा


कुछ बूंदें

आंखों से ढलक गई


---- सुनिल #शांडिल्य

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