चाँद पूर्णिमा का आज उतरा गगन में
न जाने खोया कहा चाँद मेरा भीड़ में
रहता है वो ही मेरे रूह के जर्रे-जर्रे में
घनघोर अंधेरा छाया शरद पूर्णिमा में
रोज पूर्णिमा होती थी...उसके संग में
शीतल पूर्णिमा भी गर्म उसके बगैर में
न जाने कब आएगी संग वो पूर्णिमा में
कब छंटेगी तन्हाई मेरी...
---- सुनिल #शांडिल्य
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