Wednesday, November 10, 2021

 चाँद पूर्णिमा का आज उतरा गगन में

न जाने खोया कहा चाँद मेरा भीड़ में


रहता है वो ही मेरे रूह के जर्रे-जर्रे में

घनघोर अंधेरा छाया शरद पूर्णिमा में


रोज पूर्णिमा होती थी...उसके संग में

शीतल पूर्णिमा भी गर्म उसके बगैर में


न जाने कब आएगी संग वो पूर्णिमा में

कब छंटेगी तन्हाई मेरी... 


---- सुनिल #शांडिल्य

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