मरते मरते रोज, अब इतना मर गए
तेरी यादों के सिवा, बाकी स्वाहा हो गए
बेरुखी तेरी और तन्हा हम हो गए
धस गई आँखे भीतर यू तुम्हे सोचते रह गए
तुम न समझे हाल-ए-दिल पत्थर हो गए
जबर्दस्ती नही प्यार में खामोश हम हो गए
---- सुनिल #शांडिल्य
No comments:
Post a Comment