इकतरफ़ा जो महोब्बत किया करते हैं
बेरुखी भला वो फिर कहा रखा करते हैं
जमाने से दूर अहसासों में रहा करते हैं
बदले बेवफाई के भी वफ़ा किया करते है
फितरत है जमाने की नादानियां समझना
अहसास-ए-रूह महसूस कोई ही करते हैं
अहसास-ए-महोब्बत कोई ही किया करते हैं
उतर कर रूह में खुद की डूबे रहा करते है
सुनिल #शांडिल्य
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