Wednesday, January 12, 2022

 महफ़िल तो महज इक बहाना है

मुलाकात-ए-दौर शुरू करवाना है


डूब कर दर्द में हर कोई लिखता है

मुलाकातों की गुफ्तगू में भुलाना है


लफ्ज़ो में सब इंसानियत पिरोते है

हकीकत को जमाने को दिखाना है


"इकदूजे" को सुनना और सुनाना है

तुम अपनी कहना,हमे भी कहना है


---- सुनिल #शांडिल्य

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