उसने मेरी आँखों
के श्वेताभ मे झांक
कर पूछा - : "मन चुरा
लेने की पीडा
जानते हो ना तुम"??
जानता हूं :- "पर
कामनाओं की निर्झरणी जो
बहती है ,, उस का
क्या करूँ" ??
सुनो ~
"क्या कुछ पल तुम्हें
दुलार नहीं सकता"??
"अपनी आकांक्षाओं के पँख
कुछ पल तुम्हारे मन के आसमान
पर विचरने देना चाहता हूं"
वो बोली " तुम कोरी
कल्पना मे जीना चाहते हो :
नहीं ,,
"मैं सदा तुम मे विद्यमान हूं
तुम्हारे मन के निर्मल मे श्वेताभ
शतदल बन ,, आंखों मे मोती बन
तुम मे ही..अनवरत.! ~
---- सुनिल #शांडिल्य
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