मांगी है इन हवाओं से
तेरी सांसो की खुशबू मैने
नर्म धूप सी तेरी आगोश
की गर्मी पाई है मैने
सुन रहा तेरी धड़कनों
की सुरीली सरगम मैं
सीने से लगा जो तेरे
रुह मेरी सिहर रही है
साकी नहीं मयखाना नहीं
फिर भी छाया है कैसा सुरूर
कसूर है तेरी नशीली आंखों का
जाम तो बस फिजूल है
---- सुनिल #शांडिल्य
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