Tuesday, January 18, 2022

 मांगी है इन हवाओं से

तेरी सांसो की खुशबू मैने 


नर्म धूप सी तेरी आगोश

की गर्मी पाई है मैने


सुन रहा तेरी धड़कनों

की सुरीली सरगम मैं


सीने से लगा जो तेरे

रुह मेरी सिहर रही है


साकी नहीं मयखाना नहीं

फिर भी छाया है कैसा सुरूर


कसूर है तेरी नशीली आंखों का

जाम तो बस फिजूल है


---- सुनिल #शांडिल्य

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