Sunday, January 30, 2022

 मैं एक कविता हूं

जिसे तुम रचती हो


कभी प्रेम भरती हो

कभी दर्द भरती हो


जीवित होता हूं

तुम्हारे शब्दों से


फलित होता हूं

तुम्हारे शब्दों से


मुझे निखारा है

तुम्हारे शब्दों ने


पंक्तिओं में मेरे तुमने

जैसे कोई इत्र भरा हो


जिसे छिड़कती हो मुझ पर

और मैं महक जाता हूं उनसे


---- सुनिल #शांडिल्य

No comments:

Post a Comment