Saturday, February 5, 2022

 ये गुलाब की

रक्तिम पंखुड़ियां


उफ्फ..


..मानो तेरे 

चटख लाल होठ


इनकी महक

जैसे तेरी सांसों की खुशबू


इनके रूमाली स्पर्श

जैसे तेरे मुलायम गाल


और इनके लचीले डंठल

जैसे तेरी लचकदार कमर


बाखुदा तेरे हुस्न मे

ऐसे मदहोश हुए बैठे है


की कमबख्त मयखाना

भी फीका अब लगने लगे है ।।


---- सुनिल #शांडिल्य

No comments:

Post a Comment