चकित हिरनी सी चली
बनकर बांवरी मेरी सजनी
हिय हिलोर बाँक चितवन
पिया मिलन को प्रफुल्लित तन
मन में ढेरों उठे तरंग
चंचल नैना सकुचाते पग
घूँघट ओट निहारे मुझको
लाज का गहना ओढ़े सजनी
जानकर हाल सजनी का
बढ़ाया हाथ थामी कलाई
सकुचाई मुस्काई आई आगोश मे
अनावृत हुए लाज के पर्दे
---- सुनिल #शांडिल्य
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