Monday, April 11, 2022

 आंगन में लगी बेला की

खुशबू से महके हवाएं


जहां के पर्दों से सूरज बेशक

छना हुआ और किश्तों में आए


पर हर शाम जिंदगी से भरी हो

मुरझाया सा ना बुझे कोई शाम


जहां की खिड़की से चांद की

चांदनी छन छन कर रिसे


तुम्हारा गोद और मेरा सिरहाना

दो जहानों की इतनी सी परिभाषा . 


---- सुनिल #शांडिल्य

No comments:

Post a Comment