आंगन में लगी बेला की
खुशबू से महके हवाएं
जहां के पर्दों से सूरज बेशक
छना हुआ और किश्तों में आए
पर हर शाम जिंदगी से भरी हो
मुरझाया सा ना बुझे कोई शाम
जहां की खिड़की से चांद की
चांदनी छन छन कर रिसे
तुम्हारा गोद और मेरा सिरहाना
दो जहानों की इतनी सी परिभाषा .
---- सुनिल #शांडिल्य
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