सम्हालो आंचल जरा तुम
की बूंदें आज जरा मदहोश है
भींगा यौवन इठलाता बदन तेरा
की बहके बहके से कदम हैं
भींगी बरसात फिज़ा खुशगवार
की पायल करे तेरी शोर है
गिरती बूंदें आज बेहोश है
की चूमा इसने तेरे रुखसार को है
बहक जानें दो रात काली घटाटोप है
की मदहोश आज हम हैं
---- सुनिल #शांडिल्य
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