है सारा बदन छलनी और दिल जख्मी है ;
थी कैसी मसीहा तू,क्या शिफ़ा तूने बख्शी है ।।
कुरेद कुरेद कर यादों का अलाव जगाता हूं ;
ऊपर से ठंडी हुई है, अंदर आग सुलगती है ।।
बहुत रोका है अश्कों को फिरभी छलक जाता
जैसे पत्थर का सीना चीरकर दरिया बहता है ।।
---- सुनिल #शांडिल्य
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