Monday, April 25, 2022

 अति व्याकुल मन

तरस रहा पर्तिक्षण

वेदना के तप्त अग्नि में

जलता मन

ऋतू पावस की घनघोर घटा

बन

कब बरसोगे मेरे मिर्दुल तन.?

अल्ल्हड़ सरिता -सी

वेगवती जलधारा

पुलकित प्रवाहमान

चूमती चली थी किनारा

पथिक प्यासा

अतृप्त कंठ याचना भरी आशा

अमृतमय रसपान

आतुर-सी भाषा

बाबरी-सी बन


---- सुनिल #शांडिल्य

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